Tuesday 23 February, 2010

सहजानुभूति मैने पयी है।

स्नेह सदा ही बुरी बला,
है स्नेह सदा ये कहती थी।
फिर भी उसके बन्ध पाश में,
सहजानुभूति मैने पयी है।

दुर्दिन दुर्गति में व्यक्त गिरा
सुख और दुःख की जननी जो।
उअसकी ागों के स्वर में स्वर भर,
सहजानुभूति मैने पयी है।

तनुगर्वी वो शुभ्रधवल
द्वेषदम्भयुक्त सहज चंचल।
अन्तस्तल किन्तु सहज है, जिनसे
सहजानुभूति मैने पयी है।

पीत हरित सरसो की डाली,
ओस पडी कुमुदुनी पंखुडियों सी,
वर्ण अप्रतिम है बस उनसे
सहजानुभूति मैने पयी है।

सहजानुभूति जो एक रंग भर दे,
सहज उमंग रस रंग भर दे,
जीवन की मृत चाह हो जिसको
उसमें जीने की चाहत भर दे।

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