Wednesday 18 November, 2009

International Philosophy Day


My Visit to Chhattis garh & Nagpur


International Philosophy Day


Thursday 12 November, 2009

हमनें भी कुछ सीखा जीवन से॥


हमनें भी कुछ सीखा जीवन से
पाकर कुछ यूं छटा निराली।
स्वप्निल से इस महफिल से
हमनें भी कुछ सीखा जीवन से॥

दृष्टि सुजन की पाकर आजीवन
बने रहे क्लान्त सतत क्षण ।
सदा मनुज पर आश्रित रहकर
हमनें भी कुछ सीखा जीवन से॥

शुद्ध सौम्य है अन्तस्तल जिनका
चाह स्नेह पाने की जिनसे।
कर भंजित वह अन्तस्तल
हमनें भी कुछ सीखा जीवन से॥

राग द्वेष भरी महफिल में  
संग विवेक शक्ति की पूजा।
रंगमहल सी इस भव निधि में
हमनें भी कुछ सीखा जीवन से॥

भावना के अगाध सरोवर
कहीं कभी न "मैं" डूब जाए।
सोच सदा निज कर्ममार्ग में

हमनें भी कुछ सीखा जीवन से॥

शरीर बिना है आत्म अधूरा
क्रिया बिना है ज्ञान अधूरा।
श्रान्त क्लान्त औ नीरस हो
हमनें भी कुछ सीखा जीवन से॥

नहीं मिला पद्मराग किसी को
बिन कण्टक सहन शक्ति अपना।ए
सुरभि कहां इस मुक्ति मार्ग पर
कुछ यूं ही हमनें सीखा जीवन से॥



Wednesday 11 November, 2009

Gaalaa dinner @ IITB


Friday 30 October, 2009

Conference

Pics related 84th Indian Philosophical Congress


 




 

Sunday 20 September, 2009

Exams in IITB

Exam का बुखार बच्चा हो या बूढा, जवान हो या किशोर, LKG student हो या फिर Ph.D scholar सभी को समान आनन्द देता है।

यह वो अनुभव है जो शब्दों में बयां करना नामुमकिन। १३-२० IIT में Exam का मौसम रहा, बहुत मजा आया। चलो कुछ पढाई तो Exam के डर से भले बेमन से ही सही हो तो जाता है। मेरी बातों से शब्दशक्ति के चक्कर में मत पर जाइयेगा।


आप सभी को १ दिन लेट ही सही दुर्गा पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं....

Wednesday 16 September, 2009

मम हस्तिनापुरप्रयागभ्रमणम्।

अहं २६ सितम्बर इत्यस्मिन् दिनांके देहलीं प्रति प्रस्थास्यामि। तत्र राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान-जे० एन० यू० इत्यत्र गमिष्यामि। तदनु अचिरम् एव लालबहादुरशास्त्रिसंस्कृतविद्यापीठस्थेन पितृव्येन सह तस्य गेहे वासः भविष्यति।जे० एन० यू० इत्यत्र गुरुजनानां दर्शनानन्तरं तत्रत्यकार्यसम्पादनं विधाय प्रयागं प्रति गमिष्यामि। तत्र अक्तूबर मासस्य 2&3 तमे दिनांके भविष्यामि।तत्र संगमस्नानं भविष्यति अपरं च अनुजाभ्यां सह मेलनं। तदनु तत्रत्यकार्यं विधाय तस्मिन् दिने एव मुम्बई कृते चलिष्यामि।

My Birth Day



आश्विन कृष्ण त्रयोदशी के दिन 
नवरात्रा से तीन दिवस पहले |
श्वेत धवल वस्त्रयुत हो 
सोचा मैं भी जन्मदिवस मनाऊं||

मित्र किसी ने पूछा  मुझसे 
दिवस तो ऐसा हो जो सबको|
प्यारा लगे  और  याद रहे 
रक्खो फरवरी या सितम्बर ||
जो पंडिताऊ से दूर रहे 


केक वेक लाओ, काटो फिर  उसको
याद रहे दिन नहीं, वो निशा रहे |
पार्टी सार्टी साथ करेंगे
पैग वेग  भी कुछ  साथ रहे ||


तन्मयता से सुनकर बातें 
बोलूं क्या कुछ समझा नहीं |
बोला भाई मेरे सुन मिथिला मे
पूजा होती बस  संस्कृति की|| 


तात मात  से आशीष लेकर 
गुरुजन का संबल पाकर |
अध्यवसाय मे सतत युक्त हो 
अब सोचा मैं जन्मदिवस मनाऊं||

Tuesday 8 September, 2009

IIT Bombai में हमर फ्रेशर वेलकम

फ्रेशर वेलकम अर्थात स्वागत समरोह आ कन्वोकेशन अर्थात दीक्षान्त समारोह छात्र जीवन एक अहम क्षण होइत छैक। हम धरावती (मधुबनी), एंग्लो बंगाली इलाहाबाद, यूइंग क्रिश्चियन कालेज इलाहाबाद युनिवर्सीटी एवं जवाहरलाल युनिवर्सीटी में एकर आनन्द लय चुकल छलहुं।
                               आजु आय. आय. टी मे स्वागतसमारोह छल। हम अपन अभिन्न गुजराती मित्र संग ६ बजे सन्ध्याकाल पहुंचलहु। पूरा HSS विभाग छात्र-अध्यापक-HOD-कार्यालयकर्मी सभ उपस्थित छलथि।सब (नव छात्र आओर नव अध्यापक) के क्रम संऽ बजाओल गेलन्हि। प्रो० मिलिन्द माल्शे सर के चल मन गंगा-यमुना तीर सुनलाकऽ बाद संगीतमय वातावरण भय गेल हलांकि ओ राग हमरा लेल सर्वथा अपरिचित छल संगहि अन्य व्यक्ति कऽ प्रस्तुति गिटार आदि आनन्दित कयलक। संबलपुरी नृत्य मनोरम छल। प्रो० शर्मिष्ठा के "ये शमां शमां है ये प्यार का..." वास्तव में शमां बन्हवाक काज कयलक। ई २००६ मे JNU  सऽ Ph.D कय एतय नियुक्त भेलथि।कार्यक्रम आगू बरहल। हमर बारी अयला पर हम तऽ अपन परिचय दय समाप्त करय चाहलहुं किन्तु इलाहाबाद के पृष्टभू्मि के कारण अमिताभ के "खाइके पान.." गेबाक लेल कहल गेल मुदा हमर हाल ओहने अछि जेना आजुक युवा वर्ग के क्रिकेट के बुखार। साफ साफ कही तऽ थपरी बजेबा में आगू। किन्तु आखिर बेसी गप्प सुनबा स बेहतर छल गायब- अन्ततः बिना झिक-झिक के तन मन से दू लाइन झूमै जोकरक गाओल, आगू गेबाक इच्छा जरूर छल मुदा ओ अमिताभ के नहि शाहरुख के छ्लन्हि "इक नार नवेली बरी अलवेली करे अठखेली...."। गीत समाप्ति कऽ बाद प्रश्न भेल "अइसा झटका लगे जिया पे..." झटका लगा क्या?, हम इशारा बुझि चुकल छलहुं कहलहुं जे हमरा त गंगा तीर याद सदिखन रहैत अछि मुदा गंगा-यमुना तीर बला गीत सुनि.... बु्झि सकैत छी।
कुल मिला कऽ आजु लागल जे HSS परिवार में शामिल भेलहुं। HOD  शुरू सऽ अन्त धरि छ्ली। सब भोजन निमित्त गेलथि, मुद प्याज-लहसुन सऽ मित्रता नहि भेलाक कारण हम बाहर आबि अपन प्रकोष्ठ अयलहुं और अहां सभ के समक्ष छी।

Friday 3 July, 2009

A poem in Maithily sent by Mr. Manish Thakur, Expressing Maithil vyanjan.

भिंडी
भिनभिनायत भिंडी के तरुआ, आगु आ ने रे मुँह जरुआ
हमरा बिनु उदास अछि थारी, करगर तरुआ रसगर तरकारी

कदीमा
गै भिंडी तोईं चुप्पहि रह, एहि सऽ आगु किछु नहि कह
लस-लस तरुआ, फचफच झोर, नाम सुनतहि खसतय नोर
खायत जे से खोदत दाँत, देखतहि तोरा सिकुड़ल नाक
हम कदीमा नमहर मोंट, भागलैं नहि तऽ काटबौ झोंट

आलू
जमा देबय हम थप्पड़ तड़-तड़, केलहिन के सब हमर परितर
छै जे मर्दक बेटा तोय, आबि के बान्ह लंगोटा तोय
की बाजति छैं माटि तर स', बाजय जेना जनाना घर स'
हमरे पर अछि दुनिया राजी, आब ज' बाजलैं बान्हबौ जाबी
हमर तरुआ लाजवाब, नाम हमर अछि लाल गुलाब

परवल
बहुत दूर स' आबि रहल छी, ताहि हेतु भऽ गेलऔं लेट
हम्मर तरुआ सेठ खायत अछि, ताहि हेतु नमरल छन्हि पेट
दु फाँक कऽ भरि मसाला, दियौ तेल नहि गड़बड़ झाला
दालि भात पर झटपट खाउ, भेल देर औफिस चलि जाउ

तिलकोर
सुनि हाल तिलकोर पंच, हाथ जोड़ि के बैसल मंच
सुंदर नाम हमर तिलकोर, हमरा लत्तिक ओर ना छोर
भेटी बिना मूल्य आ दाम, मिथिला भर पसरल अछि नाम

Saturday 28 March, 2009

प्रलय

प्रलय
क्या तुमनें देखा है प्रलय का मंजर ?
निस्तब्ध जगत दुःखद करुण क्रंदन,
रंग बिरंगे इस दुनियां में शून्य सा स्पंदन,
झंझवातें वो सर्वत्र कम्पन,
रग रग में टूटता आस
जहां नहीं कहीं पर विश्वास,
कहां से ये धरती फट जाए
होश किसे जो ये बतलाये,
एक क्ष में बैठे इन्हीं आंखो से
मैनें देखा प्रलय का मंजर
सर्वत्र जलाप्लावन तथा अजब सा कम्पन
इन्द्रदेव के कुपित दृष्टि चंचला से पूरित हो
बचा हुआ था अब तक कक्ष हमारा
बचे हुए थे कुछ प्राणी बाहर
भूत जिन्हें हम कहते थे
श्वेत धवल वो स्निग्ध काया
क्षभर रुककर किंचित वो मुस्काए
'रे स्वार्थी प्राणी ' कुछ यों वे होठ हिलाए
मैं इस प्रलय में बाहर हूं
तू अन्दर सोता है
पता नहीं शायद तुझको
प्रलय से कुछ शेष नहीं रहता है
तभी झटित एक हवा का झोंका आया
झोंका था या अदम्य साहस
कहां गए वो खिड़की कहां गया वो दरवाजा
होश किसे जो ये बतलाये
लगता है प्रलय जब होता है
कुछ हालत ही ऐसा होता है
कोई किसी का नहीं रहजाता है
रक्तिम वर्ण जगत का होकर
भीषण विध्वंस संवलित हो कर
अपने शक्ति का आभान करता है
यही प्रलय कहलाता है
नूतन सृष्टि का जनक होकर|

Saturday 14 March, 2009

गुस्ताखी माफ़ हो........

प्रिय पाठक बन्धु
बहुत दिनों पहले मैंने विचार किया था की आप सबों से बातें करू पर हो न सकी
चलिए आज तो मुखातिव हूं...
आप लोंगो को जल्द ही मृगत्रुश्ना नामक उपन्यास जो की मैथिलि मे है पढनें को मिलेगा

यह मूलतः मिथिला क्षेत्र से सम्बंधित है पर जीवन के महत्वपूर्ण पक्षों से इसका ताल्ल्लुकात है सो pls wait..