जैसे सिन्धुज (लवण) एवं सिन्धु (सागर) दोनों का ही सम्पर्क घाव को उद्वेलित करता है उसी तरह सज्जन में छिपा दुर्जन आपके जीवन को उद्वेलित कर देता है। कहा भी अस्तु, ऐसे सज्जनों से दूर रहें.... यह ब्लाग मूलतः हिन्दी भाषा में सर्जना को प्रस्तुत करता है......
Friday, 3 December 2010
शायद सुबह अब हो गयी।
शायद सुबह अब हो गयी।
ताड के झुडमुट से दिखती स्वर्णिम आभाएं
बादलों में प्रतिबिम्बित ये स्वर्णिम छटाएं
कहते हैं उदीचि में मूक बनकर
शायद सुबह अब हो गयी।
पंछी के कलरव, मोटर की गर्राहट
भीनी-भीनी ठण्डी बयार और नीले-नीले निश्चल अम्बर
मजदूरों के पदचाप कर्तव्य पथ पर हैं कहते
शायद सुबह अब हो गयी।
प्रातः काल की इस बेला में
धूपछाँव के इस जीवन में
कर्तव्य विरत होने वाले सुन
शायद सुबह अब हो गयी।
सूर्य चन्द्र यक्ष गन्धर्व किन्नर
पशु पक्षी और ये कीट सरीसृप
कर्तव्य पथपर हो शिक्षित करते
मानो शायद सुबह अब हो गयी।
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1 comment:
शायद हो तो गई है...
उम्दा प्रस्तुति!!
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