बचपन था वो कितना सुहाना!!
संग तेरे बठे बात लडाना।
भाई-बहन को खूब चिढाना
काम न करना कर लाख बहाना
उम्र बढी खाकर पुरबाई
मेरे मन ने ली अँगराई
जिसने निशिदिन स्वप्न दिखाई
उफ! बचपन ने क्यूं ली जम्हाई
कालचक्र ने दी तरुणाई
सबने कर दी मेरी सगाई
पति देख मैं कुछ यूं शर्माई
वक्तने क्या यह खेल दिखाई।
सुन री सखि ! अब क्या है रोना
अब बस उनका साथ निभाना
चुपके से अब है तुमको बतलाना
बचपन था वो कितना सुहाना!!
बचपन था वो कितना सुहाना!!
०१-०५-०५
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