चतुर्थीचन्द्रस्पन्दनम्
जैसे सिन्धुज (लवण) एवं सिन्धु (सागर) दोनों का ही सम्पर्क घाव को उद्वेलित करता है उसी तरह सज्जन में छिपा दुर्जन आपके जीवन को उद्वेलित कर देता है। कहा भी अस्तु, ऐसे सज्जनों से दूर रहें.... यह ब्लाग मूलतः हिन्दी भाषा में सर्जना को प्रस्तुत करता है......
Friday, 3 December 2010
शायद सुबह अब हो गयी।
शायद सुबह अब हो गयी।
ताड के झुडमुट से दिखती स्वर्णिम आभाएं
बादलों में प्रतिबिम्बित ये स्वर्णिम छटाएं
कहते हैं उदीचि में मूक बनकर
शायद सुबह अब हो गयी।
पंछी के कलरव, मोटर की गर्राहट
भीनी-भीनी ठण्डी बयार और नीले-नीले निश्चल अम्बर
मजदूरों के पदचाप कर्तव्य पथ पर हैं कहते
शायद सुबह अब हो गयी।
प्रातः काल की इस बेला में
धूपछाँव के इस जीवन में
कर्तव्य विरत होने वाले सुन
शायद सुबह अब हो गयी।
सूर्य चन्द्र यक्ष गन्धर्व किन्नर
पशु पक्षी और ये कीट सरीसृप
कर्तव्य पथपर हो शिक्षित करते
मानो शायद सुबह अब हो गयी।
Monday, 24 May 2010
WAVEs se Wave
दोस्तों,
आज मैं आपलोगों से कुछ ऐसा शेयर करने जारहा हूं जो आप सभी के जीवन में भी अक्सर घटित होता होगा पर कदाचित व्यक्त नहीं हो पाता है। आप सभी कुछ काम बडी तन्मयता से करते हैं पर जो उसे अन्तिम रूप देने बाला होता है वह उसे पसन्द नहीं करता ..... आप विवश....।
मैं कुल तीन माह १७ दिन १ शोधपत्र के साथ बिता दिया इस उम्मीद के साथ कि गुणात्मक रूप से यह श्रेष्ठ रहे। इस कारण मैं अपनें व्यक्तिगत जीवन का भी उस अबधि हेतु उत्सर्ग कर दिया.....।
दरासल इससे पूर्व भी डार्टमाउथ (यू.एस.ए) एवं सिंगापूर में शोधपत्र प्रस्तुति निमित्त स्वीकृत हुआ था पर उचित अवसर न होने के कारण यात्रा स्थगित करनी पडी थी।
इस बार यह पत्रक त्रिनिदाद हेतु स्वीकृत हुआ है अगस्त में होना है अस्तु मैं प्रक्रिया हेतु आगे बढा पर अनुमतिप्रदाताओं को कदाचित ........।
जो भी हो मुझे अनुमति नहीं मिली। दुःख इस बात की नहीं कि मुझे अनुमति नहीं मिली दुःख इस बात का हुआ कि कम से कम शोधपत्र विषयगत किसी Expert से यह तो जान लिया जाना चाहिये था कि शोधपत्र की गुणवत्ता का स्तर क्या है , यदि वे ठीक नही मानते तो मै स्वयं ही सुधार का मार्ग देखता।
उक्त घटना कदाचित प्रथम बार इस कदर हतोत्साहित किया कि.....
पर कोई बात नहीं ................
ये तो जीवन का एक हिस्सा मात्र है......
Monday, 29 March 2010
प्रणय की तुम बात न करना प्रेयसी ।
प्रणय की तुम बात न करना प्रेयसी ।
प्रणय की तुम बात न करना प्रेयसी ।
दुनियाँ निष्ठुर दिल है कोमल ,
मर्दित करते हैं ये जैसे मदगज उत्पल,
नहीं कभी तुम मुझे याद आना
नहीं कभी तुम भूल ये जाना
नहीं जानता जब मैं तुझको,
नहीं स्मृति मे है रूप तुम्हारी
नहीं समझ सका अब तक तुमको
फिर कहाँ जहाँ में ढूंढूं तुमको
मेरे दृगमें तुम उल्लास नभरना
सुनों सखि! प्रणय की तुम बात न करना।
कोई कहे है तुझको सुन्दर
कोई कुरूप है बतलाता
ऐसे में सुनो प्रेयसी
प्रणय की तुम बात न करना प्रेयसी ।
प्रणय नहीं ये काम्य नहीं ये काम्य भाव जो
टिका रहे इन अंगो पर
प्रणय नहीं वो विष का प्याला
चिरनिद्रा तक तक जो साथ है दे पाए
प्रणय नहीं वो दृढ वक्र अयस
जो तत्पजनों को और तपाते
प्रणय नहीं धन जन यौवन
क्षणभर का साथ निभाकर
फिर आगे बढते जाते
इसीलिये हूं आज मैं कहता
प्रणय की तुम बात न करना।
प्रेयसी प्रणय की तुम बात न करना ।
Tuesday, 23 February 2010
सहजानुभूति मैने पयी है।
स्नेह सदा ही बुरी बला,
है स्नेह सदा ये कहती थी।
फिर भी उसके बन्ध पाश में,
सहजानुभूति मैने पयी है।
दुर्दिन दुर्गति में व्यक्त गिरा
सुख और दुःख की जननी जो।
उअसकी ागों के स्वर में स्वर भर,
सहजानुभूति मैने पयी है।
तनुगर्वी वो शुभ्रधवल
द्वेषदम्भयुक्त सहज चंचल।
अन्तस्तल किन्तु सहज है, जिनसे
सहजानुभूति मैने पयी है।
पीत हरित सरसो की डाली,
ओस पडी कुमुदुनी पंखुडियों सी,
वर्ण अप्रतिम है बस उनसे
सहजानुभूति मैने पयी है।
सहजानुभूति जो एक रंग भर दे,
सहज उमंग रस रंग भर दे,
जीवन की मृत चाह हो जिसको
उसमें जीने की चाहत भर दे।
है स्नेह सदा ये कहती थी।
फिर भी उसके बन्ध पाश में,
सहजानुभूति मैने पयी है।
दुर्दिन दुर्गति में व्यक्त गिरा
सुख और दुःख की जननी जो।
उअसकी ागों के स्वर में स्वर भर,
सहजानुभूति मैने पयी है।
तनुगर्वी वो शुभ्रधवल
द्वेषदम्भयुक्त सहज चंचल।
अन्तस्तल किन्तु सहज है, जिनसे
सहजानुभूति मैने पयी है।
पीत हरित सरसो की डाली,
ओस पडी कुमुदुनी पंखुडियों सी,
वर्ण अप्रतिम है बस उनसे
सहजानुभूति मैने पयी है।
सहजानुभूति जो एक रंग भर दे,
सहज उमंग रस रंग भर दे,
जीवन की मृत चाह हो जिसको
उसमें जीने की चाहत भर दे।
Tuesday, 16 February 2010
जीना तो है उसी का जिसने ये राज जाना...
Life is not just waiting for some one
who is made for you
who is made for you
but life is living for someone
who leaves because of you !
who leaves because of you !
H'PPY:-VALENTINES DAY!
you will think that why I greet you in such a way!,
Oye yaar!! this is just a massage which has been sent by some one to teach me what is the actual life means.
I also used to think that लाइफ मे बिन्दास रहने का टेंशन नहीं लेने का, but think one moment for that boy who is suffering from blood cancer since 2003. His family has spent everything to save that boy. That boy is just 12years old.
I am glad that I tried to save him. He needs A+.His father told me that he is in Mumbai since December 2009, but he got fed up so he has decided to go Rajiv Gandhi Cancer Hospital, Rohini, New Delhi, Or PGI, Lucknow from Tata Cancer Hospital, Mumbai.
Oye yaar!! this is just a massage which has been sent by some one to teach me what is the actual life means.
I also used to think that लाइफ मे बिन्दास रहने का टेंशन नहीं लेने का, but think one moment for that boy who is suffering from blood cancer since 2003. His family has spent everything to save that boy. That boy is just 12years old.
I am glad that I tried to save him. He needs A+.His father told me that he is in Mumbai since December 2009, but he got fed up so he has decided to go Rajiv Gandhi Cancer Hospital, Rohini, New Delhi, Or PGI, Lucknow from Tata Cancer Hospital, Mumbai.
I went there, I was quite unknown for him. I had to face security staff according to rule of Tata Cancer Hospital. Any how, I found him. I met that boy, Who was smiling. that time I remembered 'ANAND'. I happened a little bit emotional but cared myself.
When I was about to return I told his father -I will meet RAVI when he will be quite fine, but I have silently withdrawn my words when he asked me-'SACH..!!'
The day after tomorrow they will proceed probably for RGCH
The day after tomorrow they will proceed probably for RGCH
Wednesday, 13 January 2010
अपने कौन?
तन ने जब गद्दारी की,
अहसास हुआ, हैं अपने कौन!
पल पल जिनसे प्यार किया
हर पल जिसका ध्यान किया
कटु अनुभव पा उनसे
अहसास हुआ, हैं अपने कौन!
जीवन साथी वो जनम जनम के
प्यार किसी? से करते वो!!
व्याज सदा ही रहता होठों पर
अहसास दिलाता जो अपने कौन!
कोई जिये मरे कोई
काम से बस मतलब रखना है
सब आखिर अपने है!!
शान्त स्निग्ध धवल वो सुन्दर
कलुषित बस जो समझ नही!!
बस एक चुभन के आगे
जान पडा है अपने कौन?
सुन प्रीत मेरे देख जगत को
हर एक ने रीत यही निभाई है।
वो अलग नहीं इस भीड भेड से
अब तो जान है अपना कौन?
Sunday, 3 January 2010
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