जैसे सिन्धुज (लवण) एवं सिन्धु (सागर) दोनों का ही सम्पर्क घाव को उद्वेलित करता है उसी तरह सज्जन में छिपा दुर्जन आपके जीवन को उद्वेलित कर देता है। कहा भी अस्तु, ऐसे सज्जनों से दूर रहें.... यह ब्लाग मूलतः हिन्दी भाषा में सर्जना को प्रस्तुत करता है......
Wednesday, 18 November 2009
Thursday, 12 November 2009
हमनें भी कुछ सीखा जीवन से॥
हमनें भी कुछ सीखा जीवन से
पाकर कुछ यूं छटा निराली।
स्वप्निल से इस महफिल से
हमनें भी कुछ सीखा जीवन से॥
दृष्टि सुजन की पाकर आजीवन
बने रहे क्लान्त सतत क्षण ।
सदा मनुज पर आश्रित रहकर
हमनें भी कुछ सीखा जीवन से॥
शुद्ध सौम्य है अन्तस्तल जिनका
चाह स्नेह पाने की जिनसे।
कर भंजित वह अन्तस्तल
हमनें भी कुछ सीखा जीवन से॥
राग द्वेष भरी महफिल में
संग विवेक शक्ति की पूजा।
रंगमहल सी इस भव निधि में
हमनें भी कुछ सीखा जीवन से॥
भावना के अगाध सरोवर
कहीं कभी न "मैं" डूब जाए।
सोच सदा निज कर्ममार्ग में
सोच सदा निज कर्ममार्ग में
हमनें भी कुछ सीखा जीवन से॥
शरीर बिना है आत्म अधूरा
क्रिया बिना है ज्ञान अधूरा।
श्रान्त क्लान्त औ नीरस हो
हमनें भी कुछ सीखा जीवन से॥
नहीं मिला पद्मराग किसी को
बिन कण्टक सहन शक्ति अपना।ए
सुरभि कहां इस मुक्ति मार्ग पर
कुछ यूं ही हमनें सीखा जीवन से॥
Wednesday, 11 November 2009
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